क्या तो उत्तराखंड को अभी और ऐसे आपदाये देखनी होंगी?
हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर का टूटना, हिमानी का बहना, हिमीभवन (Frost Action) जैसी घटनाएं एक सतत हैं । ऋषि गंगा, रैणी गांव ( पर्यावरण विद माँ गौरा देवी कर्म स्थली) जिला चमोली, नन्दादेवी राष्ट्रीय अभयारण्य, उत्तराखंड की ये आपदा कोई ऐसे ही नहीं आयी । इसका संभावित कारण ये हो सकता है कि ग्लेशियर क्षेत्रों से नीचे बहती जलधाराओं का उच्च ढालों के बीच की घाटी में किसी कठोर चट्टानों के अज्ञात अवरोध के कारण झील का निर्माण हुआ हो और कुछ दिनों पश्चात जल, दबाव और ग्रेविटी के कारण विस्फोट से फट गया हो । यहाँ ये समझना जरूरी है कि हिमालयी क्षेत्रो में चट्टानों का घनत्व कम रहता है, इस तरह हम कह सकते है कि गुरुत्वाकर्षण भी कम रहता है। कठोर सतह और तीब्र ढलानों पर ग्लेशियर अपेक्षाकृत तेजी से आगे बढ़ता है ।
ये समय अति शीतकाल का है इसलिए ग्लेश्यिर जल्दी फिघले हों ये संभावना न के बराबर है । अति हिमपात से ये हो सकता है कि किसी अनियमित ढाल पर वर्फ के भार के ज्यादा होने से ग्लेशियर का एक टुकड़ा टूटकर गिर गया हो । पर अगर ऐसा होता तो नदी में कुछ दूर तक हिमखंड जरूर बहे होते और नदी का प्रवाह इतना तेज नहीं होता । रैणि गांव के आसपास नदी के आपदा के दिन का वेग दिखता है कि हिमानी अपने मूल स्थान पर ही पिघल गयी थी और या तो किसी भूमिगत झील में पानी इकट्ठा हुआ और फिर फूट गया या तापमान इतनी जल्दी बाद गया कि हिमानी पिघल गयी ( पर तापमान बढ़ने का इस सर्दी में कोई इसका प्राकृतिक कारण नहीं हो सकता ) ।ऐसे में सबसे सोचने वाली बात ये है कि जो हिमालय दुनिया के पर्यावरण संतुलन का एक सबसे बड़ा क्षेत्र है उस क्षेत्र के इतने नजदीक कैसे हम घरती के संतुलन को बिगाड़ने वाली इन परियोजनाओं कि स्वीकृति दे सकते है । संभवतः ये परियोजना हिमालय के सबसे नजदीक होगी और इसके निर्माण के समय किये गए उत्खनन और मानवीय आच्छादन की वजह से हिमालयी क्षेत्र पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा हो और ये आपदा इसी का परिणाम हो ।
ये समय सचेत होने का है और सरकार को चाहिए की हिमालय के इतने नजदीक की परियोजनाओं को बंद कर दे जैसे की केदारघाटी में सोन प्रयाग में बन रही परियोजना। इसमें एक वर्ग जिसकी सबसे ज्यादा आलोचना होनी चाहिए वह है पत्रकार, आज के पर्यावरण कार्यकर्ता और नेता । लगता है स्व गौरा देवी का ये पहाड़ पर्यावरण की रक्षा के लिए सही कदम उठाना भूल गया । आज के ज्यादातर पर्यावरणविद , कार्यकर्ता और पत्रकार या तो निर्माण कम्पनियो के साथ सांठ गाँठ किये हुए है या उनको इस बात का घ्यान ही नहीं है । गढ़वाल और कुमाऊ विश्विद्यालयों के भूगर्व वैज्ञानिको और भूगोलवेत्ताओं के लिए भी ये एक चुनौती का समय है कि अब सही से शोध किये जाय। नहीं तो उत्तराखंड को अभी और ऐसे आपदाये देखनी होंगी ।
Events such as glacier breakdown, glacial
runoff, frost action are a constant in the Himalayan region. This disaster near
Rishi Ganga, Raini Village (Land known for Gaura’s Chipko Movement) District Chamoli,
Nandadevi National Sanctuary, Uttarakhand, is not that one such common incident.
The possible reason for this may be that the lake formed due to unknown
interception of some hard rocks in the riverbed and busted later due to pressure
and gravity. It is important to understand here that the density of rocks in
Himalayan regions is low, thus we can say that gravity is also low. The glacier
moves relatively fast on hard surfaces and steep slopes.
This is a very cold season, so the
possibility that the glaciers fade quickly is slim. Due to excessive snowfall,
a piece of glacier may have collapsed due to excessive load of glacier on an
irregular gradient. But if that was the case, icebergs would have flowed far in
the river and the flow of the river would not have been so fast. The velocity
of the day of the river disaster around the village of Raini shows that glaciers
melted at its original place either
water collected in an underground lake and then erupted or the temperature increases
so soon that the glacier has melted. (But there can be no natural reason for
increasing temperature during this extreme winter).
In such a situation, the most important
question is that how we approve these multi-purpose projects to be built so
close to the Himalaya? This may lead the
imbalance of the earth. This project in Tapovan, probably be the closest to the
Himalayas and the excavation and human activities that took place during its
construction has had a very negative impact on the Himalayan region and this result
in the form of this disaster.
It is time to be vigilant and the
government should stop building these projects so close to the Himalayas as in
Son Prayag near Kedarnath.
The people that should be criticized the
most are journalists, environmental activists and leaders of Uttarakhand. This
mountain region of Gaura Devi seems to have forgotten to take the right steps
to protect the environment. Most of the environmentalists, activists and
journalists have either tied up with construction companies or they are not
aware of this. It is also a challenge for geologists and geographers of Garhwal
and Kumaon Universities to research properly, otherwise Uttarakhand will still
have more such calamities.
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