ठहरे हुए गुबार
वो चेहरे की हंसी पढ़ना मुश्किल है वो साज-औ - श्रृंगार कुछ कहता है पढ़ता हूँ बरस बाद लौटे वो शब्द तुझे मानना न मानना अब बेबस है वो ख़ामोशी लिखना मुश्किल है उन आंसुओ को भूलना मुश्किल है सोचता हूँ ठहरे हुए गुबार में आंधियां आना न आना अब बेखौफ है स्नेह की स्मृतियों को भूलना मुश्किल है एकतरफा रिश्तों को तोडना मुश्किल है मानता हूँ एकांत के कुछ क्षणों में रिश्तो की डोर पर बस न तेरा है न मेरा है