अब
मान था सम्मान था गर तु छोड़ देता स्नेह सारा या कि प्रेम त्याग घृणा सभी, यूँ सहानभूति और सच्चाई से दूर अब तेरी जरूरत नहीं तेरा वो रूप ढह गया जो माफीनामा लिखवाता था वो तेरे पास खींचता था ये सुंदरता आकर्षित न कर पायेगी अब तेरी जरूरत नहीं कमी होगी जीवन मै उदास रहेगा मन कभी प्रेम के अश्रुस्राव हो भी जाये तो क्या तेरा ये रूप याद कर लूँगा चल अब तेरी जरूरत नहीं