अजनबी से अजनबी का सफर
वो अजनबी जो अपना सा लगा जीवन को एक कहानी दे गया ख़ामोशी, सादगी से तेरी दोस्ती की सौगात कब तुझे अपनों में गिन गयी, होश नहीं तेरे से जुडी हर समानता यादों की जीवन रूपी नेपथ्य के ढेरों घटनाक्रम वह दोस्त, वो अपनापन और कथाक्रम कब तू सबसे करीब आ गया, होश नहीं फिर नज़रे झुकना और ठिठक जाना हल्की सी मुस्कराहट और दोस्तों में छुप पाना नजाकत, गंभीरता और तेरी सच्चाई कब तुझे दोस्तों में शामिल कर गयी, होश नहीं फिर तेरी साजिशें तेरे लोगो की खबरे सुना मेरे हर कदम पर तेरी शिकायतें द्वन्द, नाराजगी और रास्तो के मोड़ कब दूरियां बड़ा गए, होश नहीं फिर मेरे खिलाफ तेरे मन की आवाज़ मेरे अपनेपन से तेरी असहजता गैर, छलावा और सबपर बिखरती हंसी कब फिर अजनबी कर गयी, होश नहीं ........दोस्त!!!!!