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राहें तब भी

कभी कोई विरहन पूछेगी कभी बहस कोई सड़क चलेगी धी में सनी कोई गुदगुदी रोटी पालक संग कोई चाय तकेगी रंग लगी पुरखों की  हवेली  नल की टोंटी सूखी होगी शक सूबा सवाल कभी सब कभी शहर में आँधी होगी मिजाज कभी बदले से होंगें कभी प्रश्नों की झडी सी होगी कविता तब भी शब्द तकेगी डोर सांस अटकी सी होगी तब भी जब सब नल सूखेंगें तब भी जब सब सडक नपेंगी तब भी जब घनघोर अन्धेरा राहे तब भी ढूंढ में होंगी 

कब

लिखा हुआ जो विधि का है फलिभूत कब कर्मो से जीवन के सघर्षों से कब मन की आपाधापी से बोने समर्पण विश्वासों के कब जीत भरोसा पाये हैं कब शब्दों के बाणों ने  मार्ग प्रशस्त करवायें हैं  प्रयत्नों के प्रयासों से सुधी हुई ना तृप्ति हुई कब प्रमाणों के परिणामों से सुभगता की जीत हुई कुछ थोडा सा कर जाना है कुछ सिद्ध नही कर जाना है कब अहसानों के धागों से स्नेह प्रीत से गुथी रही