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सार हो

एक सडक छोड के आया हूँ एक शहर जोडने आया हूँ अधूरी सी मंजिलों पर एक इबारत रचने आया हूँ सफर में साथ तेरा हो मंजिल पर कदम तुम्हारा हो कमचली सी पगड़डियों पर मजबूत हाथ तुम्हारा हो  रोटी सी फूलती उम्मीद हो थाली की आखिरी तृप्ती हो कविता की आखिरी पक्ति हो और जीवन का सब सार हो