दिवाली
ऐ दीवाली तु अबके भी नही आयी याद लायी तु मगर अपनों को नही लायी हर उजाला दीप है बस मनों सन्ताप है कब सजेगी थाल पूजा कब घरों में रोशनी सबके नामों के दीप बस जलते रहे बुझते रहे याद बस मनती रही उत्सव तो खाली रहे हर घरों के द्वार पर एक इन्तजार सा रहा कब आयेगी आहट तेरी कब सफर की मंजिलें घर रहा खाली सदा यूँ सफाई ही रही खुशी तो है बहुत पर कुछ कमी सी रही हर मनों में ख्वाब है उस किरण की आस है कब जायेगा वनवास ये कब सजेगी देहरी ऐ दीवाली तु अबके भी नही आयी