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Showing posts from January 12, 2025

मौन

मौन मन की कल्पना के प्राण का अवसाद तय है स्नेह की क्यारी जगत में राख होना तय रहा है नद नदी बिहड़ कटे सब खाक होना तय हुआ है डूबता सूरज कहां फिर वो उजाला बन सका है टूटते तन मन बदन में मन ढेर होना तय रहा है बह गये सब वो किनारे तटबन्ध बाँधे जो डटे थे अब प्रलय सब साथ लेकर बढ चली सब ओर लहरे मैं मिलूँगा बस समुन्दर गर्द या फिर सीपि बनकर