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Showing posts from August 14, 2022

वो तु ही है

 वो तू ही है जो दर्द है अपनापन है  कमी है मन का शुकूं भी है  अँधेरे का रोशन दीया ढलती शाम का सहारा है  उम्मीदों के आसमान पर  चमकता सा सितारा है  और एक बात कहूँ  तू है सर का दर्द मेरा  तू ही है जो किताबों में है  आखरों में है शब्दों में है  पहाड़ों से समुन्दर में है  भावनाओं में कल्पनाओं में है  अधूरे से कुछ सपनों में है  साँस लेते हुए रिश्तों में है  बनते मकां और  उजड़ते विश्वाश में है  और एक बात कहूँ  तू भूत सी जगती रातों में है वो तू है जिससे नाराजगी सी है  वो तू ही है जो अपनेपन में है  मनाना है तुझसे रूठना है तुझसे  आस में तू विश्वास में तु चलती हुई सी सांसों में तु  बसती सी बस्ती है  उजड़ती ही हस्ती है  और एक बात कहूँ  तु जिन्न सी मेरी सांसों में है  वो तु ही है जो हमसफ़र है  रुलाता है हसाता है  पहाड़ों का इंद्रधनुष  और रेगिस्ता  सी मृगतृष्णा है  दुनिया में सबसे खास मन का अभिमान है तु  लड़ूँ तो चैन नहीं न मिलूं तो शुकूं नहीं ...