वो तु ही है
वो तू ही है जो दर्द है अपनापन है कमी है मन का शुकूं भी है अँधेरे का रोशन दीया ढलती शाम का सहारा है उम्मीदों के आसमान पर चमकता सा सितारा है और एक बात कहूँ तू है सर का दर्द मेरा तू ही है जो किताबों में है आखरों में है शब्दों में है पहाड़ों से समुन्दर में है भावनाओं में कल्पनाओं में है अधूरे से कुछ सपनों में है साँस लेते हुए रिश्तों में है बनते मकां और उजड़ते विश्वाश में है और एक बात कहूँ तू भूत सी जगती रातों में है वो तू है जिससे नाराजगी सी है वो तू ही है जो अपनेपन में है मनाना है तुझसे रूठना है तुझसे आस में तू विश्वास में तु चलती हुई सी सांसों में तु बसती सी बस्ती है उजड़ती ही हस्ती है और एक बात कहूँ तु जिन्न सी मेरी सांसों में है वो तु ही है जो हमसफ़र है रुलाता है हसाता है पहाड़ों का इंद्रधनुष और रेगिस्ता सी मृगतृष्णा है दुनिया में सबसे खास मन का अभिमान है तु लड़ूँ तो चैन नहीं न मिलूं तो शुकूं नहीं ...