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Showing posts from December 29, 2019

मिठाई

एक मिठाई बँट गयी कुछ कभी छुपाई गयी खाली होते डिब्बे पर कुछ चासनी सी बच गयी एक भोग में चढ़ाई गयी कुछ लोगों में बाँटी गयी जो अपनों को रखी थी  वो शैवाल में बदल गयीं यादों की तरह हैं ये मिठाई कभी मीठी कभी बेस्वाद लगी जो बंटी वो सराही गयी  जो बच गयी वो मन में रही

खाली रहा

पर्वतों के पार से एक  आवाज़ आयी चली गयी चाँद भी ठहरा मिला  और चाँदनी ग़ायब रही  अहसास थे लाखों मगर पर एक डगर खाली मिली  बजता रहा एक ढोल सा  ताल कुछ मिलायी नही प्रवाह अविरल बहता रहा कुछ कभी ठहरा नही  मन्द था प्रकाश फिर भी घुप अन्धेरा छाया नही उम्मीदों के खेत थे हर तरफ  फ़सल स्नेह की उगी नही  नज़रों ने घेरा हर तरफ  वो नज़र टकरायी नही  ख्वाइश जीतने की थी नही पर मन कभी हारा नही 

स्वभाव नही

पहले और आख़िरी के द्वन्द में नही  बाद में, फिर कभी स्वभाव नही  पहाड़ों से लगाव छूटता नही  सहजता  स्वाभाविकता रही  तोल मोल कर हर बात कहना  मेरा स्वभाव नही । रिश्तों और भावनाओं में ठहराव रहा   उनके सन्देशों का इन्तज़ार भी न रहा अपनी सीमायें टूटती नही  लाँघने की कभी ज़रूरत नही  फूँक फूँक कर हर कदम उठाना मेरा स्वभाव नही। हार जीत के बन्धन से मुक्त रहा  हवाओं के उन्माद में तो रहा  पर बयारों के बहाव मे बहा नही  चोटियां पार की है बहुत  पर हर चोटी पर झण्डा फहराना  मेरा स्वभाव नही 

ये साल

कभी खुशी दे गया  कभी आँसू दे गया कभी हार दे गया  कभी जीत दे गया भरोसे के किसी झुरमुट में जुगनु कभी  रोशनी दे गया कभी विश्वासों के ठूँठ जला गया घावों को नासूर तो क़लम को कलमी दे गया   ये साल ऐसी हा कुछ अनमिट यादें दे गया  सुनहरे कुछ पलों मे रिश्तों की नींव रख गया  खाली कोनों में स्मृतियों के चिराग़ जला गया  बड़ों का आशीर्वाद और छोटों का प्यार दे गया कभी सम्मानों की दहलीज़ पर बिठा गया  तो कभी ख़ालीपन के महल दे गया  ये साल कभी दौड़ता लगा कभी ठिठका लगा पाना खोना जीतना हारना इस साल भी रहेगा अपनो सा कोई चेहरा फिर यादों मे रहेगा  शिखर पर लहराती पाताकाओं में  अपनों का हाथ और सर-माथे लहरता अहसास इस साल फिर कोई रंग मन को केशरिया रंगेगा