यूँ बेरंग होकर भी, हर जगह तेरा ही रंग है। ख़ामोश जो दिखता है, चारों तरफ़ उसका ही शोर है। जिसके लिए हम नावजूं रहै, अपने वजूद की जब तलाश की, तो हर जगह वो शख़्स ही मिला ...
एक निष्कर्ष जिस पर, आजतक नहीं पहुँचा , कौन था जो खाईयां बढ़ाता रहा। तु ही था जो सबसे क़रीब था, एक रंचना थी सम्मानों की, कभी तो जताता कि, वो क्या था जो जचता न था।
उसे दोस्तों का जूनून था कभी उसने मुझको कहा नहीं वो पास से गुजर गया मगर कभी उसने मुझको पढ़ा नहीं जो कहा है तुझको तेरी बात पर मन मै तुझसे शिकवा नहीं इस मुश्किलों के पहाड़ को तेरी नाराजगी से गिला नहीं .....