सर्वभोम
जहाँ कभी विराम हुआ था सम्मान अभी भी उतना है जहाँ कदम वो ठिठक गए थे अहसास अभी भी उतना है बदली हर राहों में अब भी इंतजार तो उतना है छायादार खड़े पेड़ों में नीड बना खामोश रहा 'टूख़ः' कभी भी चढ़ ना पाया सूरज अब भी दूर रहा भीड़ रही है चारों ओर मन फिर भी शांत रहा जीवन का दर्शन है ये तो त्याग यहाँ सर्वभोम रहा पाने को मंजिल थी बहुत रुकना मन का विधान रहा जीतने को अम्बार पड़ा था हारना मन का त्याग रहा