एक तेरे ही
एक तेरे ही बलबूते पर
सपनों को सजाया है
लांघे हैं पहाड़ वो सारे
फिर दरिया को पाया हैं
एक तेरे ही सुनने को
ढोल ताश बजाये हैं
देखें हैं झरने वो सारे
फिर शांतचित को पाया हैं
एक तेरे से कहने को
गीत गजल सब लिख डालें
चढ़ी हैं खेतों की सीढियाँ
फिर "बुग्यालों" को पाया हैं
कहने को तो नश्वर हैं सब
फिर भी सपनों को सजाया हैं
यूँ तो खानाबदोश ही रहे हमेशा
फिर भी अपनों को पाया हैं
सपनों को सजाया है
लांघे हैं पहाड़ वो सारे
फिर दरिया को पाया हैं
एक तेरे ही सुनने को
ढोल ताश बजाये हैं
देखें हैं झरने वो सारे
फिर शांतचित को पाया हैं
एक तेरे से कहने को
गीत गजल सब लिख डालें
चढ़ी हैं खेतों की सीढियाँ
फिर "बुग्यालों" को पाया हैं
कहने को तो नश्वर हैं सब
फिर भी सपनों को सजाया हैं
यूँ तो खानाबदोश ही रहे हमेशा
फिर भी अपनों को पाया हैं
Comments
Post a Comment