अनायास
एक गीतों की बानगी सांसो ने लिखी कहीं हाथों हाथ मिले मगर अहसासों की बन्दगी शामों की फिजाओं में मनों की खामोश स्वीकृति तन मन दोनो एक हुए दुनियां की परवाह नही लबो के रंग मिल गये हमजोली परिधानों की छुकर बार बार गये वो कोमल स्पर्श पंखुडी उत्तापों के तापों पे हिलोर लगायी बानगी झूले पर्वत साथ समुन्दर समा गयी सब धारनी सीमित समयों ने छेडी है सीमित तान मल्हार सी बाहों संग समा बैठी है कोमल तन की अगडायी दो से एक हुए मन तर्पण संग बडी अतुरायी भी खुद को खुद के साथ समाकर खुद से मिली दिवानगी