बिना किसी
जो गुथां रहा धागे में पिरोया रहा एक कड़ी में मज़बूती से विश्वास डटा रहा माला के फूल और मोती यूँहीं बिना किसी आधार जुड़े नही रहते जो सदैव सोच में बना रहा गीत ग़ज़लों की लड़ी बनकर सहूर से स्नेह बना रहा जुड़ाव की आस और याद यूँही बिना किसी अपनेपन के जुड़ी नही रहती