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Showing posts from November 23, 2025

निशान

कुछ बस याद रहे काले से निशां रहे जन्मों और अजन्मों में कर्ण कोई कोई राम रहे कुछ आँखों से बह निकले कुछ घूँट गले में अटक गये बातों और खामोशी में जुडे कोई कोई बह निकले कुछ रूखे से बदन गये कुछ गदराये जख्म गये होश और बेहौशी में रोये कोई कोई चीख गये जन्म अजन्म की बात नही दुविधा मन की बह निकली साथ और समर्पण में बिछे कोई कोई पसर गये

तलाश में हूँ

पहाड के ढाल पर नदी का ऊफान हूँ पेड की छाँव में ढकी सी एक बौड हूँ चमकता सा हिमालय पिघलती सी बर्फ हूँ घने से जंगल में कुहरे की चादर हूँ गैहूँ की कोपल पर औंस की सी बूँद हूँ घर के पिछवाडे में नारंगी का पेड हूँ सर्दियों की सुबह में तकती सी धूप हूँ पहाड से बहाँ हूँ समून्दर की तलाश हूँ