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Showing posts from September 22, 2024

हस्ताक्षर

गंगा की पावन धारा में एक गोता खाकर आया हूँ हरसिंगार के फूलों की खूशबू में घुल आया हूँ सांसों में सांसे देकर कुछ पल जीकर आया हूँ मैं स्पर्शों के अहसासों  पर हस्ताक्षर कर आया हूँ कोमल से कुछ फूलों की पौध रोप कर आया हूँ धरती में जो बीज पडें थे उन्हे जगाकर आया हूँ स्मरण की आयामों का मन चित्र साथ में लाया हूँ मैं स्नेह की गुफाऊ  पर हस्ताक्षर कर आया हूँ कविता की कुछ नई पंक्तियां शब्दों में लिख लाया हूँ समर्पण की वही कहानी गहरी दोहराकर लाया हूँ सपनों के ताने बानों को थोडा गहरा करके आया हूँ मैं स्पर्शों के अहसासों  पर हस्ताक्षर कर आया हूँ

वृतांन्त

कौन सका है बाँध वो खुशबू कौन पवन को रोक सका गुलमोहर से भरे रास्तों पर कौन तुझे कब भूल सका यादों की कविता लिखती है दिन वो कौन अजान रहा कौन समय जब दूर हुए हम कौन समय अहसास जगा कौन समय ठंण्डी काफी का कौन समय गरमाहट थी कौन समय वो हरियाली और कौन समय आगोश बसी देखो बढते से इन रास्तों पर कब समय मिले कब मंजिल हो चलते रहना साथ मुसाफिर कौन कहाँ कब सांस थमे

मन महाभारत

कोई आँख लगे ही सो जाये  कोई रात रातभर जग जायें कोई वक्त मिले पर बात करे  कोई वक्त वक्त पर बात करे कोई सिमटी दुनियाँ रखता है  कोई फैला आकाश समाये है कोई जीवन संग में बाँध चला  कोई अब भी डामाडोल लगा वक्त सभी का जबाब लिए  मन सबका हिसाब लिए तेरे मन की तु जानें  मैं जौहर आग लगाये लगाये हूँ या कि अब रणभेदी है  या साथ समर्पण हो जाये तेरे मन की तु जाने  मैं अर्धसत्य चक्रव्यूह लडूँ तु तटस्थ रह बलदाऊ सा  मैं एकपक्ष महाभारत लडूँ