न तेरा न मेरा
जाने का ग़म यूँ तो नही खुशी पलभर की ही तो थी अपना था कौन राह-ए-गुज़र मंज़िल यहीं उदास थी थमता लगा जो राह-ए-शहर नदियाँ वो अपनी बहती लगी सोचा जिसे वो राह-ए-बहर रुकती कोई साँस थी तेरा नही न वो मेरा हुआ करता रहा बस ये नादांनियां संम्भाला जिसे वो दर्द-ए-जिगर न तेरा हुआ न मेरा कहीं