जुगनू हूँ
शहर की शाम में चेहरा गुम है तेरा साथ है हर वक्त और जिक्र गुम है तेरा संवादों से परे भी एक दुनिया है मेरी चुप गुमशुम सी नाराज जिन्दगी है मेरी अहसासों का अंबार और यादों की ताबिर है शहर में हल्ला बहुत है मन बडा खामोश है रौशनी में चौन्धियाना न आया है मुझे जुगनू हूँ मुझें अंधेरों का इतबार है