नहीं आता
तेरी तरह मन की बातों को मन मे रखना नहीं आता लिखी बातों को मिटाना नहीं आता मन मे तेरा सम्मान रहा है हमेशा तेरी तरह ठिठक कर नज़र फेरना नहीं आता तेरी तरह शब्दों को चयनित कर तोल मोल कर लिखना नहीं आता गुमशुम मन के बंबडर को छुपाना नहीं आता नज़रों ने तलाश किया जिसे उन अपनो सा है तु तेरी तरह हर बात सोच समझकर कहना नहीं आता होती हैं सीमाऐं सबकी पर बँधना नहीं आया स्वच्छन्द उड़ा हूँ हर सरहद के पार आवाज़ शायद कभी गयी नहीं है उस पार फिर भी बेबाक़ी से लिखता हूँ रिश्ता अपना तेरी तरह भावनाओं का नापतोल करना नहीं आता