ख़ामोशी
ये शहर क्यूँ खामोश लगता है
कौन अपना है जो दूर चला जाता है
शाम की गोधूली मे छुपता है
आस का गीत छूटता है कोई
यूँ न रिश्ते सभी तमाम होते हैं
याद की लौं को जलाता है कोई
चाँद छुपता रहा है बादल मे
अब इस अमावस को स्याह करता है कोई
इस फ़लसफ़े मे कुछ पल गुज़ारे है
याद की सौग़ात उजाड़ता है कोई
रिश्ता ये रहा है बस सम्मानों का
आज मन को चुभा के जाता है कोई
मुकम्मल रहैं वो नज़ाकत तेरी
आज अपना सा दूर जाता है कोई
बेनिशां थे वो रंग रुठ जाने के
आज मन को रगां गया है कोई......
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