उन छापों से
कहनी जो थी बातें तुझसे मन के अन्दर ख़ामोशी से गीत अकेलेपन का गाती हैं भीड़ मे भी बेहोशी से देखता हूँ कहीं दूर तुझको मन के बन्द झरोखों से देख लेती है आँखें सबकुछ घुप जीवन के अन्धेरों से सुननी थी जो बातें तुझसे आँसू के झलकते उन झरनो से मन पर कोई थाप छोड़ गयी गीली पलकों के उन छापों से