दुआओ की मुराद

जब वक़्त कभी बोलेगा
तो सुनूंगा सब 
हवाऐं फ़सल लहरायेंगीं
कान लगावूंगा तब 
वजूद बनाया है दोस्त!
सुनी सुनाई बातें असर नही करती

कोई मुड़कर देखेगा
तो रूकुंगा तब 
नदियाँ स्नेह की बहेंगी
तो उतरूँगा तब 
एकाकी ही रहा हूँ दोस्त 
झुंड मे सांसो की आदत रही नही है कभी 

कोई पूछेगा खरीयत
तो बताऊँगा सब
मेरे पहाड़ों सा दिखेगा कोई
छांव मे सुस्ताऊँगा तब 
जानता सब हूँ दोस्त!
पहाड का नसीब और दुआओं की मुराद नही होती



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