रिश्तों को अमरत्व
हे! सूर्यदेव हे! गंगा माँ
हे रश्मिरथी हे कुन्ती माँ
मैं अपराधी अन्यायी मैं
स्नेह ने एक कर्ण जना था
कहाँ था साहस सच का
और लोकलाज का भय था
लिंग भेद का ज्ञान नही था
स्नेह ने एक कर्ण जना था
कहाँ बनेगा अधिरथ मानव
साथ स्वयं की लाचारी
परित्याग का भाव नही था
स्नेह ने एक कर्ण जना था
सीमाऐं साधी थी खुद को
विश्वासों के कब कदम थे डगमग
एकदूजे का साथ परस्पर
स्नेह ने एक कर्ण जना था
सच कडवा था साथ अडिग था
दुनियां वही और जबाब नही था
निश्चय दामन थामा हमने
स्नेह ने एक कर्ण जना था
माँ की ममता त्याग पिता का
इन रिश्तों का शानी कब था
पत्थर दिल अधरों पर ताले
स्नेह ने एक कर्ण जना था
रिश्तों की लाचारी बरबस
खामोशी ने त्याग किया था
प्रण साथ कर गया जीवन तेरे
स्नेह ने एक कर्ण जना था
जाते जाते अहसास दे गया
हमको दो से एक कर गया
रिश्तो को अमरत्व दे गया
स्नेह ने एक कर्ण जना था
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