मौन हैं
मौन कहाँ कुछ सुन पाया हैं यादों के वीरानों में तुम भी गुमशुम हम भी गुमशुम लम्बी उम्र पड़ी है देहरी पर मौन कहाँ कुछ कह पाया है ख़ामोशी के आलम में तुम भी चुप हो हम भी चुप हैं फिर बसंत खड़ा है देहरी पर मौन कहाँ कुछ लिख पाया हैं कागज के खाली ढेरों में तुम भी खाली हम भी खाली फिर सुनी शाम है देहरी पर