शून्य
शून्य सी पहचान ओढ़े टटोलता हूँ जब खालीपन को कुछ ख़त्म हुई डायरियों पर घिसे हुए कलम की नोक से पन्नो पर घूरते कुछ शब्द अनायास कहने की ताक में खामोश गुनगुनाते हैं शून्य से सफर पर दौड़ता हूँ जब पाने की होड़ में कुछ ख़त्म हुए रास्तों पर धीमे से कदमो की आहट से झुकी थमी सी कोई नज़र शिकायतें करती सी लगी खामोश ताकते हुए