महात्म
जिस मन में कुछ अंकुर फूटे जिन बीजों में जीवन है वो आस पालते रहे सदा हर बर्फिले तूफानों में संयम का साथ कहाँ छूटा है कहाँ बोझ मन पडा रहा जब जब रूठा जीवन मुझसे बाबा तेरा साथ रहा कुछ राहें चलनी बाकि हैं कुछ सफर अभी अनजाने हैं कुछ गीत अधूरे छूटे हैं कुछ जोर-ओ-अजमाईश है मैं एकान्त का औगण बाबा धूनी रमाऐं वहाँ बसूँ उस जीवन का क्या महात्म बाबा जो जीवन तेरे पास नही