तर जायेंगें
कसम ये है कि जहाँ तक राह हो हमसफर रहना
मैनें तुझे हर मोड पर मुझको अजमाते देखा
वो तीगुने हैं साल मेरे अहसासों के तुझसे
यूँ वक्त बे-वक्त भावनाओं को न तोला जाये
मैं पत्थर था कि तराशा है एक कारीगर ने मुझे
फिर कोई औरंगजैब मुझे पत्थर बना नही सकता
एक तेरे छूने भर से रामसेतु की शिला हैं हम
तर जायेंगें या कि अहिल्या से जम जायेगें
Comments
Post a Comment