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क्वे दिन

क्वे दिन उकाल देखि क्वे दिन उन्द्वार पायी ख्वोयी बिसरी हरची क्वे दिन जग्वाल बिनसरी हो रतब्यणि हो हो द्वोपरी भरमार  सजी धजी थामी जापी  क्वे दिन अकाल  क्वे दिन उज्यालू देखी क्वे दिन घम्माण ऊखरू भक्वरू जागी तापी क्वे दिन खच्याट 

अर्ध कहानी

सुनी हैं मैने अर्ध कथाऐं  सीखी हैं कुछ कलाऐं भी मैं संग्राम लडूँगा पूरा ही इतिहास रचाकर जाऊँगा अभिमन्यु सा कूद पडा हूँ चक्रव्यूह सब सजा रहे मैं कोशिश करूगा पूरी ही अब बचन निभाकर जाऊँगा मै रणभेदी की अजर गर्जना तु समर्पण का उत्ताप रखे मैं निकल पडा हूँ  पूरा ही तु मंजिल पर बस साथ रहे