ख़ैरियत
दो बातें ख़ैरियत की पूछता हूँ चुपके से ये नही कि तु जबाब दे ये कि तु अलग है सबसे न यादों के पंख होते हैं न हर मंज़िल का मकां है ये नही कि तुझे पाना है ये कि तुझे खोना नही है भूलने को सब विवाद हैं किसी के बिछायें जाल हैं रिश्तों की लिखापढ़ी नहीं ये मन की एक इबारत है