जीवन की पंगते
डगर मंज़िलों की
यूँ दुश्वार भी नही
कोई राह दिखा गया
कोई साथ चल दिया
जीवन की पंगतो पर
भावनाओ के अहसास
ख़ाली हो भी जाय तो क्या
निशाँ बाक़ी रह ही जाते हैं
ज़मीं से जुड़ी जड़ो पर
असमय तीखे प्रहार
असर कर भी जाय तो क्या
पेड़ उगना भूल नही जाते
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