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Showing posts from December 27, 2020

अब भी

मैं कश्ती किनारे  छोड आया हूँ  तन्हा कहीं दूर  चला आया हूँ  मुड़कर कुछ  दिखाई नही देता  मैं सपनों की  दुनिया छोड आया हूँ  टिमटिमाता वो  तारा अब भी है सौंधी ख़ुशबू का  वो झोंका अब भी है  कच्चा ही सही  वो हुनर बचा है कहीं  मै सपनों की दौड़ में  अब भी शामिल हूँ 

तु गुमशुम सा रहता है

 नदी हिमालय जंगल झरने सा तु मन में रहता है  कविता गीत ग़ज़ल सा मन लिखता तुझको पढ़ता है  अपने पराये बन्धन से मन अलग खडा ही रहता है  भीड़ भरे कोलाहल मन में तु गुमशुम सा रहता है निंदिया  चंदा सात समंदर सा तु दूर ही रहता है  पंछी चिड़िया मंद हवा सा मन तुझ तक ही उड़ता है  बसने उड़ने से अलग कहीं मन बीज पड़ा तु रहता है  ख़त्म हुई सब आस के मन में तु गुमशुम सा रहता है सड़क सफर उम्मीदें मंजिल तु चलता ही रहता है  माँ ममता बचपन दादी सा मन में तु ही रहता है  पाने खोने से पहले कहीं मन तुझ तक ही तो जाता है  छूटे बिछड़े खोते  मन में तु गुमशुम सा रहता है 

हम पहाडी

  नदी हिमालय जंगल झरने   बाँझ बुरासों के 'अग्वाल' लगेंगे  हम पहाड़ी, पहाड़ो के सब दर्द लिखेंगे खोदोगे पहाड़ कहीं  या जंगल काटोगे  हम पहाडी पहाड़ो के हर अधिकार माँगेंगे टूटी फूटी सड़क कहीं खिसकते पहाड़ बोलेंगे  हम पहाडी पहाड़ो की हर बात लिखेंगे  रोजगार विकास को टोहे  हर पलायन का दर्द कहेंगे  हम पहाडी पहाड़ो के  हर हाल लिखेंगे  रोक नदी पर बाँध बनाये  उस बिजली का दाम मांगेंगे  हम पहाडी पहाड़ो के हर सवाल पूछेंगे प्रसव पीड़ा में मरती नारी  बंद स्कूलों के ताले खोलेंगे  हम पहाडी पहाड़ो के हर घोटाले खोलेंगे  देवस्थानों पर तानाशाही  शासन के  राजशाहों को धिक्कारेंगे  हम पहाडी पहाड़ो के हर अधिकार मांगेंगे  देख, पहाड़ी जनता जागी अब दरबारों  से जबाब मांगेंगे  हम पहाडी पहाड़ो के हर अधिकार मांगेंगे