फिर रूठ जाती है
वो रूठती है सताती है मानती, मान जाती है और फिर रूठ जाती है सजती है बुलाती है समझती, समझाती है और फिर रूठ जाती है जानती है जताती है अपना अपनाती है और फिर रूठ जाती है सिक्के हैं पहेली है मेरी बुनियाद तुझसे है मेरी कविता मेरे गीतों के अर्थों में समाहित है जीवन है की मृत्यु है सभी का सार तुझसे है