चल फिर बाँट लेते हैं मन्दिर मेरा मस्जिद तेरी मिश्रा मेरा ताहिर तेरा जयचन्द तुम्हारा हम्मीद हमारा चल फिर बाँट लेते हैं गोधरा और गुजरात को कश्मीर और बंगाल को औवेसी और कलाम को चल फिर बाँट लेते हैं शाह और सुल्तान को मीर और पीर को रहीम और कबीर को चल फिर बाँट लेते हैं कविता और ग़ज़ल को अजान और आरती को या हिन्दी और उर्दू को चल फिर बाँट लेते हैं काबा और अयोध्या को धोती और कुर्ते को या टोपी और गमछे को चल फिर बाँट लेते हैं खिचड़ी और बिरयानी को गाय और सुअर को या कि खीर और शैवाईयां को चल फिर बाँट लेते हैं दुप्पटे और हिजाब को जुलाहे और किसान को या पान और तम्बाकू को चल फिर बाट लेते हैं हिन्दुस्तान और पाकिस्तान को ज़मीं और माटी को माँ बहन की आबरू को चल फिर तु शाहिद बाग़ और नौखाली कर जश्न कर मैं बालाकोट, मन्दिर और तीन तलाक़ का जश्न करूँ चल तु भी हैवान हो जा मैं भी हैवान हो जाऊँ तु ईद पर गले न मिल मैं दिवाली की मिठाई न बाँटूँ चल मैं पत्थर उठाऊ तु भी बम गोले उठा तु मुझे मार डाल मैं तुझे...