दूरियाँ यूँ रही
उतार दिया उन्हें कागज पर
जो बातों का सिलसिला चला ही नही
लिख डाले कई अहसास
जो कभी किसी से बयां किये ही नही
दूरियाँ का आलम ये रहा
चला तो बहुत दूर पर तय हो नही पायीं
ख़ामोशीं की चादर यूँ फैली
ओढ़ी तो सही मगर हर ओर से छोटी ही लगी
रिश्तों का घेर ऐसे उलझा
कि जो सबसे पास है वो बहुत दूर ही रहा
क़िस्से कहानियों में सब अटका
हकिकत जो रही वो ओझल ही रहा
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