तर्क
लडकर फिर बार बार लडना मनाना और फिर लड जाना समर्पित होते हैं कुछ रिश्ते अहसासों का अपना संसार होता है जहाँ तर्क हो वहाँ स्नेह कहाँ होता है मनाकर फिर बार बार रूठ जाना रूठना और फिर मान जाना सांसें देते हैं कुछ रिश्ते अपनो में कोई सबसे अपना होता है जहाँ तर्क हो वहाँ स्नेह कहाँ होता है बातकर फिर बात बात न करना चुप रहना पर हर बात सुनते जाना जरूरी होते हैं कुछ रिश्ते अपना सब है पर कोई खास होता है जहाँ तर्क हो वहाँ स्नेह कहाँ होता है कहकर कि आना मत इन्तजार करना खुद के काम समेटकर उसको सोचना जरूरी होते हैं असमय साथ जब भीड में भी एक अकेलापन होता है जहाँ तर्क हो वहाँ स्नेह कहाँ होता है