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Showing posts from February 2, 2025

खण्डित

नदी समुन्दर ताज घाट सब भरवा रोटी स्नेह निरन्तर नई स्नेह के आकृतियों में माँ ममता सब देहरी तुझ तक समय ताँकती लम्बी दुपहर छोटी छोटी मुलाकातों पर सुनसान मनों में पडी रही वो पीडा दुविधा खुशियां तुझतक दे आये सब निशां यादों के लम्बित लम्बे झगडे मन के  खण्डित हर्षित पुलकित मन की बची हुई सब सांसे तुझ तुक

धूप

ये वक्त अलग है कि वक्त नही है समय की दरिन्दगी में मन का वेग नही है आशाओं के आसमान पर एक तारा है बादलों के पीछे एक फैला आसमा है कोपल फूटेगी दरख्तों के साये से कल्पना के बीज गहरे गुमशुम तो हैं  ढलता ही सही फकत उजाला अभी बाकी है रात लम्बी है तो क्या सुबह की धूप अभी बाकी है