बात
बात स्नेह की कब थी सम्मानों की थी मनाना किसने चाहा था बात,बात की थी फ़ासलों में रहना या फ़ैसला करने की थी बात साथ चलने की कब थी निभाने की थी बात देखने की कब थी नज़ाकत क़दमों मे थी दायरे तो पहले से थे दूरियाँ बढ़ाने की कब थी गुमशुम थे सब नाराज जताने की कब थी बात पाने की थी ही नही खोकर भूलने की न थी