लौटती जरुर है
जिसे बिना सोचे ही लिख लेता हूँ यादों के गहरे समुन्दर में एक पत्थर सा उछाल देता हूँ अस्तित्व को तलाश करती कोई आवाज़ तुझसे टकराके लौटती जरुर है जिसे बिना देखे ही समझ लेता हूँ सुनसान कमरे के उस आईने में अपने से प्रतिबिम्ब को झकझोर देता हूँ अंधेरे को चिरती प्रकाश की कोई किरण तुझसे टकराके लौटती जरुर है जिसे बिना छुये ही महसूस कर लेता हूँ अंगुलियों की उस झन्नाहट मे यादों का एक गीत सा रच देता हूँ शब्दों के अनसुलझे जाल मे कोई कविता तुझसे टकराके लौटती जरुर है