रिश्तों के भाव
रिश्ते कब अवैध होते सब कुछ मन के बाँधे रहते हैं कोई केवट सा नाव बिछाता कुछ शबरी के बैर मिठा सा साथ कहाँ सब चल पाते हैं कुछ दूर मनों से बसते हैं कोई कृष्ण सा चावल ढुंढता कुछ मीरा का एकतरफा सा वक्त कहाँ एक सा होता है कुछ बस के बेबस होते हैं कोई चिता पर आग लगाता कुछ जलकर खाख़ होता सा भाव कहाँ सब बदल जाते हैं कुछ मन बीज पङे से होते हैं कोई दर्द वेदना का सहता कुछ आघात लिए है भाग्यों सा रिश्ते कब अवैध होते सब कुछ मन के बाँधे रहते हैं कोई कह जाते पीङ नीङ सब कुछ राह ताकते रहते हैं