आना तुम
कोई वो शाम हो जिसमें तुम्हारे साथ बैठें हों निहारे दूर से हिमला कहें कुछ बात चुपके से बुलाता हूँ पहाडों में कभी सब छोड आना तुम कभी जो आँख भर आये कभी मन कुछ अकेला हो मनों में प्रश्न अनगिन हो बुने मन ख्वाब चुपके से बुलाता हूँ पहाडों में कभी सब छोड आना तुम कभी सबकुछ अधूरा सा कभी सुनसान रातें हो खुद से हो गिला सिकवा या दुनियां के बहानें हो बुलाता हूँ पहाडों में कभी सब छोड आना तुम