'बकवासें'
हम राहों में चलकर ही यूँहीं एक साथ आये हैं हजारों हैं मगर इम्तिहान हम जीतने तो नहीं आये 'कुछ भी' हैं ये 'बकवासें' जो तुझतक जोड़ती मुझको हजारों हैं मगर सपने सब सच तो नहीं होंगे मीलों का सफर मेरा न होंगी ख़त्म उम्मीदें सागर से हिमालय तक सब अपने साथ कब होंगे ऊचें से कुछ मचानों पर बना है ख्वाब जीवन का न गिर कर जी सकूंगा मैं न अकेले चल सकूंगा मैं जो है कुछ पास अब मेरे वोही काफी है जीवन का न सपने पाके जी पाया न खोकर जी सकूंगा मैं