गांव को शहर में लाया हूँ
मैं गांव को शहर में लाया हूँ खुले खेत खलिहानों को मीनारों से ढक आया हूँ गंगा में नहाने वाला अब रौशनी से चौंधियाने लगा हूँ.... मिट्टी तन से सनी हुई जो इत्तर से ओढ़ आया हूँ शामों के घर पगफेरै अब रातों में जगने लगा हूँ .... उम्रदराजी सम्मानों को नामों से कहके बुलाता हूँ दोस्तों पर हक़ अपनापन अब सोच समझ के जताता हूँ मैं गांव को शहर में लाया हूँ