बातें खुद से पूछ रही थी चुप रहने से क्या जाता है कहने का तब अर्थ नहीं है भावों में जब वो रहता है आँखें मंद हो पूछ रही थी यादों से कब वो जाता है सोने का तब अर्थ नहीं है सपनों में वो जब आता है आवाज़ कहीं से पूछ रही थी लिखने से कब क्या होता है शिलालेख का अर्थ नहीं है मिटकर भी वो असर रहा है मन ने मन से बातें की जब तुझ तक कहने से क्या होता है शब्दों तब अर्थ नहीं है मौन सदा से प्रखर रहा है