रंग चढ़ा रहा
मनों के रास्तें जो अब विरान रहें किसी के क़दमों की थाप आती रही ख़ाली सुनसान पड़ी उन जगहों से कोई नज़र हर बार झांकती लगी उन उदास रास्तों के छिटके फूलो में एक मुरझाया सा फूल हँसता मिला हज़ारों सम्मलित रंगीन महफ़िलों में उसकी सादगी का रंग अब भी चढ़ा रहा पेड़ों से गिरते पत्तों को देखा जब कभी अपनो की वो तलाश हवा मे उड़ाती रही ठिकानों की भटकती तलाश अन्धेरे में हर बार उसकी रोशनी में चकाचौंध रही