मैने नक़ाब हटाने की, कोशिश क्या की, वो गुनहगार मान बैठा। मुखौटों का जीवन, तुमने जिया है दोस्त! मै सम्मानों की राह पर हूँ, तेरा साथ हो -न हो, ये जरुरी तो नहीं।
वो इमेल जो मै पूरा पढ़ नहीं पाया, वो डीपी जो खुली ही नहीं, वो मिठाई जो भेजी ही नहीं, और वो पीला सूट जो पहना ही नहीं, तभी कहता हूँ पर जीता हूँ .... सपनों की दुनिया भी अजीब है ..
तु ना ही जाने तो अच्छा है, इस पथ पर क्या-क्या गुज़री है। अनायास आते तेरे ख़्यालों को, कब कब क्या क्या रुप दिये हैं। अक्षर लिख कर पूजे हैं, तुम पर जो भी गीत रचे हैं।
मेरे पहाड़ों की सादगी देख, सुर्ख़ हैं कठोर हैं और खामोश हैं। फिर भी तुझ तक ले जाते हैं, तेरे स्नेह की वो नज़रें, और तेरी हँसी को याद दिलाते हैं। काश! कि तु भी पहाड होना सीख लेता।।
तेरे पास शब्द न बचे रहे, ये अहसास था मुझको। अब भावनायें मर सी गयी, दुख इस बात का है ।। फिर कौन है जो बिष वृक्ष बो रहा, ये जो अजर अमर बचपना है!! क्या अब इसे भी मार दूँ?