Posts

Showing posts from February 9, 2025

राख

साथ गहराता अन्धेरा हर समय चलता रहा मर चुका जो मन चिता की राख को मलता रहा पुण्य के कुछ काम जो अंशों में किये उधार हों अब फना हर उम्मीद हो साथ खामोशी रहे गुनगुनाऐं गीत जो कर्कश लगे गढते रहे मैं कल्पना के झाड़ पर धधकती सी आग हूँ जलता सा शहर हूँ विरान सा शमशान हूँ बरसों की लुकाछिपी और तन छोडता सा प्राण हूँ

चिताऐं

अब समय की दौड में कुछ हो अलग पहचान सी या कि रंगों के सरोवर या राख बदली रेत सी अग्नि कुण्डों में झुलस कर स्वाह हो अर्पण कभी कुछ चिताऐं शेष हों और मन मेरा औगण रहे लालसा बस शिव रहे और तु मृत्यु तक साधना मेरी