चिताऐं

अब समय की दौड में कुछ हो अलग पहचान सी
या कि रंगों के सरोवर या राख बदली रेत सी
अग्नि कुण्डों में झुलस कर स्वाह हो अर्पण कभी
कुछ चिताऐं शेष हों और मन मेरा औगण रहे
लालसा बस शिव रहे और तु मृत्यु तक साधना मेरी

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