बेरुखी क्यों है
परेशां है परेशानी बता तो बेरुखी क्यों है जो गुस्सा है तो गुस्सा हो मगर ये बेरुखी क्यों है रिश्तों की कहाँ सीमा कहाँ उम्मीद मरती है सजा है मन उजालों से मगर ये बेरुखी क्यों है टूटी होगी मर्यादा कहाँ सम्बन्ध छूटे हैं वो मन में प्रीत है सबके मगर ये बेरुखी क्यों है न तुझसे कोई शर्ते हैं न तोड़े तू कोई बंधन वो देखा है समर्पण सब मगर ये बेरुखी क्यों है इबारत चाह की कब है जीवन के पड़ावों पर समय कब रुका सबको मगर ये बेरुखी क्यों है जानता हूँ नहीं कुछ भी जो तुझको रोक पाऊ मैं साथ तेरा रहा सदा मगर ये बेरुखी क्यों है