मन की आवाज़
है मन की वो आवाज़ जो रुकने नहीं देती कभी
तु साँस का क़तरा मेरा जो तु गया तो मै नहीं
है पृथा का पार्थ तु कर्मो की कीर्ति का धनञ्जय
है विजय की वीरगाथा अग्नि का प्रकोप तु
उत्तरा का भय निवारण द्रोण का अभिमान तु
तु मेरा हर साथ है गांडीव की झंकार तु
मैं ब्युहरण सब पार लूँगा साथ रहना तु जरा
जयकाव्य एक इस प्राण का रचना है तेरे साथ में
है गोप का हर साथ तु जमुना की गायों का संरक्षक
है दुर्पादा की लाज तु कुरु राज का प्रकोप तु
कौन्तेय का आरोही रहा तु गोवेर्धन धारी रहा
तु अग्रदूत मेरा रहा और मार्ग का संस्कार तु
मैं व्याधिता को लाँघ लूँगा साथ रहना तु जरा
द्वारका इस प्राण की रचनी है तेरे साथ मै
है मन की वो आवाज़ जो रुकने नहीं देती कभी
तु साँस का क़तरा मेरा जो तु गया तो मै नहीं
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